मां ज्वालामुखी देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश
यहाँ ज्वालामुखी देवी मंदिर (Jawalamukhi Devi Temple) का इतिहास, महत्व और दृश्य पेश हैं—फोटो सहित
🕉️ मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
यह मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी सती की जीभ गिरी मानी जाती है। माना जाता है कि इसी स्थान पर उनकी जिह्वा गिरने के कारण देवी ज्वालामुखी का ये रूप प्रकट हुआ था ।
इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है—यहाँ की प्रकृतिक नीली लपटें चट्टानों में से निकलती हैं, जिन्हें देवी का स्वरूप माना जाता है ।
---
📜 मंदिर निर्माण और ऐतिहासिक घटनाएँ
राजा भूमि चंद कतोच (कांगड़ा के राजा) को स्वप्न में देवी के स्थान का दर्शन हुआ था। उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया और राष्ट्रीय पहचान दी ।
मुगल सम्राट अकबर ने मंदिर में आग बुझाने का प्रयास किया, लेकिन वह विफल रहे। उन्होंने सोने की छत्र (छाता) अर्पित किया, जो देवी के अस्वीकार करने पर अज्ञात धातु में परिवर्तित हो गया—यह माना जाता है कि इस घटना ने उनकी आस्था को गहरा प्रभाव डाला ।
महाराजा रणजीत सिंह ने 1809/1815 के आसपास मंदिर का गुम्बद सोने से मढ़वाया और उनके पुत्र खरक सिंह ने चाँदी से चढ़े मोहरों वाले दरवाज़े (folding doors) भेंट किए। मंदिर का अंतिम रूप लगभग 1835 तक पूर्ण हुआ ।
---
🔥 मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएँ
मंदिर “इंदो‑सिख शैली” में बना है, जिसमें सोने की गुंबदें और चाँदी के सिले हुए फोल्डिंग दरवाज़े हैं। मुख्य मण्डप में नेपाल के राजा द्वारा भेंट की गई एक बड़ा पीतल की घंटी है ।
गर्भगृह में एक तीन फीट चौड़ा गड्ढा है—जिसके भीतर नौ स्थायी नीली ज्वालाएँ निरंतर जल रही हैं, जो विभिन्न देवी रूपों को प्रदर्शित करती हैं: महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडा, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अनुजा दिवी ।
प्राकृतिक गैस पाइप से निकलने वाले ये सातत्यपूर्ण ज्वालापीड़ाओं से बिना किसी ईंधन के फूँकते हैं ।
---
🕯 पूजा और धार्मिक कार्यक्रम
मंदिर में दैनिक पाँच आरतियाँ होती हैं:
मंगल आरती (सुबह लगभग 5 AM),
पंज उपचार पूजा (सूर्योदय के बाद),
भोग की आरती (11 AM–12 PM),
शाम की आरती,
और रात में की जाने वाली विशेष सायं आरती जिसमें देवी के सुप को भव्य श्रृंगार करते हैं और संस्कृत श्लोकी सुनाए जाते हैं ।
प्रतिदिन हवन होता है और दुर्गा सप्तशती के अंश पढ़े जाते हैं।
भक्तों द्वारा रवी (गाढ़ा दूध), मिश्री, मौसमी फल, दूध आदि का भोग अर्पित किया जाता है।
दो बार वार्षिक मेला (Navratri में) भव्य रूप से आयोजित होते हैं—मार्च–अप्रैल (चैत्र) और सितंबर–अक्टूबर (आश्विन) में, जहां लोक संगीत, नृत्य, कुश्ती आदि होते हैं ।
---
🧭 स्थान, आने का रास्ता और समय
यह मंदिर कांगड़ा वैली से लगभग 30–35 किमी दक्षिण हिमाचल प्रदेश में स्थित है, धरमशाला से लगभग 50–56 किमी दूर ।
निकटतम रेलवे स्टेशन: ज्वालामुखी रोड (Ranital) (~20 किमी), निकटतम हवाई अड्डा: गगल एयरपोर्ट (46 किमी) है ।
मंदिर गर्मियों में सुबह 5 AM से रात 10 PM तक, और सर्दियों में 6 AM से रात 9 PM तक खुला रहता है ।
---
🔍 संक्षेप में
विशेषता विवरण
शक्तिपीठ स्थिति माँ सती की जीभ गिरी माना जाता है
पूजा रूप मूर्ति नहीं, प्राकृतिक ज्वालाएँ
निर्माणकर्ता राजा भूमि चंद कतोच, बाद में रणजीत सिंह
वास्तुकला इंदो‑सिख शैली, सोने की गुंबद, चांदी के दरवाजे
धार्मिक कार्यक्रम पाँच आरतियाँ, दैनिक हवन, Navratri में मेले
आगंतुक सुविधा निकट रेलवे, हवाई संपर्क, आवास व खानपान पास:



Opmerkings